गणितशास्त्र में संख्या को अनेक आधारों में वर्गीकृत किया गया है। लेकिन गणित की संख्या पद्धति में गुणनखंडों के आधार पर संख्या का वर्गीकरण तीन प्रकारों के रूप में किया गया है।
- भाज्य संख्या (Composite Number)
- अभाज्य संख्या (Prime Number)
- सह-अभाज्य संख्या (Co-prime Number)
इस गणितीय लेख में हम अभाज्य संख्या का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे। परंतु उससे पहले हम भाज्य संख्या और सह-अभाज्य संख्या की भी संक्षिप्त जानकारी ले लेते हैं।
गुणनखंडों के आधार पर संख्या का वर्गीकरण
1) भाज्य संख्या किसे कहते हैं?
ऐसी संख्या जो 1 और स्वयं के अतिरिक्त किसी अन्य संख्या से भी विभाजित हो जाती है, उसे भाज्य संख्या कहते हैं। ऐसी संख्या के 2, 3 या अधिक गुणनखंड होते हैं। जैसे – जैसे – 4, 6, 8, 9, 10 इत्यादि।
कुछ भाज्य संख्याओं के गुणनखंडों का प्रारूप
- 4 = 2 × 2, 1 × 4
- 6 = 2 × 3, 1 × 6
- 8 = 2 × 2 × 2, 1 × 8
- 18 = 2 × 3 × 3, 1 × 18
2) अभाज्य संख्या किसे कहतेहैं?
ऐसी संख्या जो 1 और स्वयं के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकृतिक संख्या से विभाजित नहीं होती है, उसे अभाज्य संख्या कहते हैं। ऐसी संख्या के केवल 2 ही गुणनखंड होते हैं। जैसे – 2, 3, 5, 7, 11 इत्यादि।
कुछ अभाज्य संख्याओं के गुणनखंडों का प्रारूप
- 2 = 2 × 1
- 3 = 3 × 1
- 7 = 7 × 1
- 19 = 19 × 1
- 31 = 31 × 1
3) सह-अभाज्य संख्या किसे कहते हैं?
सह-अभाज्य का अर्थ है – एक ही संख्या से एक साथ विभाजित होने वाली संख्या। इसका तात्पर्य है – युग्म की वो दो संख्याएँ जिनका महत्तम समापवर्तक (HCF) केवल 1 होता है, उन्हें सह-अभाज्य संख्या कहते हैं। जैसे –
- (7,13) = 1
- (17, 19) = 1
- (41, 47) = 1
कोई भी दो क्रमागत संख्या भी सह-अभाज्य संख्या कहलाती है। जैसे –
- (41, 42)
- (17, 18)
- (36, 37)
संख्या 0, 1 और 2 से जुड़ी कुछ विशेष बातें
- गणितीय सिद्धांतों के आधार पर 0 और 1 की संख्या, न तो भाज्य हैं और न ही अभाज्य।
- 2 सबसे छोटी अभाज्य संख्या है।
- 2 एकमात्र सम-अभाज्य संख्या है।
- सह-अभाज्य संख्या के रूप में 0 के साथ युग्म में केवल 1 या –1 ही होते हैं।
अभाज्य संख्या का विस्तारपूर्वक अध्ययन
अभाज्य संख्या की गणितीय परिभाषा क्या है?
अभाज्य संख्या उन धनात्मक और पूर्णांक संख्याओं को कहते हैं, जिन्हें 1 और उसी संख्या के अलावा अन्य कोई भी प्रकृतिक संख्या विभाजित नहीं कर सकती है।
अभाज्य संख्या को रूढ़ संख्या भी कहा जाता है। इसके गुणनखंड में 1 और स्वयं उस संख्या के अतिरिक्त अन्य कोई भी संख्या नहीं होती है।
उदाहरण के लिए,
- 23 = 1 × 23
- 37 = 1 × 37
- 59 = 1 × 59
इन उदाहरणों में किसी भी एक संख्या पर ध्यान दें तो हमें इसकी परिभाषा आसानी से समझ आ जाएगी।
जैसे 37 एक अभाज्य संख्या है, जिसे 1 और स्वयं 37 के अलावा और कोई भी संख्या विभक्त नहीं कर सकता है। अतः इसमें 1 × 37 इसका गुणनखंड है। केवल 1 और स्वयं 37 ही इसका गुणांक है।
अभाज्य संख्या से संबन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
- अभाज्य संख्याएँ सदैव 1 से बड़ी होती है।
- ये हमेशा धनात्मक और पूर्णांक रूप में होतीं हैं।
- अभाज्य संख्या को ज्ञात करने की विधि को गुणनखंड कहते हैं।
- इसमें केवल 2 ही गुणनखंड होते हैं।
- 2 अभाज्य संख्या की सबसे छोटी इकाई है।
- 2 के अतिरिक्त अन्य सभी अभाज्य संख्याएँ विषम होती हैं।
- 0 और 1 को अभाज्य संख्या नहीं माना जाता है।
- अभाज्य संख्याओं की संख्या अनन्त है।
- अब तक की खोज के अनुसार, 82589933 सबसे बड़ी अभाज्य संख्या है।
- अभाज्य संख्या की परिभाषा केवल प्राकृत संख्याओं पर ही लागू होती है।
- अभाज्य संख्याओं का कोई निश्चित नियम नहीं होता है, उन्हें परिभाषा के आधार पर ही प्राप्त करना पड़ता है।
1 से लेकर 100 तक की सांख्य शृंखला में अभाज्य संख्याओं की सूचि
1 से 100 तक के प्राकृत संख्या में अभाज्य संख्याओं की कुल संख्या केवल 25 है।
- 2 3 5 7 11
- 97 13 17 19 23
- 29 31 37 41 43
- 47 53 59 61 67
- 71 73 79 83 89
अभाज्य संख्या का नियम – अभाज्य संख्या कैसे ज्ञात करते हैं?
वैसे तो अभाज्य संख्या के लिए कोई निश्चित या लिखित नियम नहीं है। लेकिन फिर भी, 2 ऐसी विधियाँ हैं, जिनके द्वारा अभाज्य संख्या को ज्ञात किया जा सकता है। अधिकांशतः ये विधियाँ सही सिद्ध होती हैं।
अभाज्य संख्या ज्ञात करने की प्रथम विधि
अभाज्य संख्या के लिए पहली विधि में 2 सूत्रों का प्रयोग किया जाता है।
- 6n + 1
- 6n – 1
इन 2 सूत्रों से प्रथम 13 अभाज्य संख्याओं को ज्ञात किया जा सकता है। यहाँ n = 1, 2, 3… इत्यादि हो सकते हैं। आइये कुछ उदाहरणों से इसे समझते हैं।
- 6 × 1 + 1 = 7 6 × 1 – 1 = 5
- 6 × 2 + 1 = 13 6 × 2 – 1 = 11
- 6 × 3 + 1 = 19 6 × 3 – 1 = 17
- 6 × 4 + 1 = 25 6 × 4 – 1 = 23
- 6 × 5 + 1 = 31 6 × 5 – 1 = 29
अभाज्य संख्या ज्ञात करने की द्वितीय विधि
यह विधि किसी लिखित फोर्मूले की तरह नहीं है, बल्कि सिर्फ एक तरकीब है। इसे 40 से बड़े, केवल प्रथम 39 संख्याओं को ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
इसका सूत्र है: n2 + n + 41
यहाँ n = 1, 2, 3 … 39 है। आइये इसके भी कुछ उदाहरण देखते हैं।
- (0)2 + 0 + 0 = 41
- (1)2 + 1 + 41 = 43
- (2)2 + 2 + 41 = 47
- (3)2 + 3 + 41 = 53
- (4)2 + 4 + 41 = 61
- (5)2 + 5 + 41 = 71
अभाज्य संख्या के इस लेख का निष्कर्ष
अभाज्य संख्याएँ, वे संख्याएँ हैं जो किसी भी अशून्य प्राकृतिक संख्या के गुणनखण्ड को प्रदर्शित करने की क्षमता रखती है। ये गुणनखंड एक ही प्रकार के हो सकते हैं। अतः इसे अंकगणित का मौलिक प्रमेय भी कहा जाता है।